शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

डाइबो रस

यदि आपको या आपके परिवार में किसी को डायबिटीज है तो यह लेख अवश्य पढ़ें।
डाइबिटीज़ एक ऐसी शारीरिक अवस्था है जिसमें रक्त(खून) में लंबे समय तक शर्करा(शुगर) की उच्च मात्रा बनी रहती है। यह शर्करा रक्त में ग्लूकोज के रूप में होती है। आदर्श स्थति में यह सुबह खाली 100 mg/dl से कम होनी चाहिए। व भोजन के 2 घंटे उपरांत यह 150 mg/dl तक जा सकती है। अब आप सोच रहे होंगे कि रक्त में शर्करा का काम क्या है यह शर्करा हमारे शरीर को ऊर्जा देती है यह हमारे शरीर का यह ईधन है जब यह शर्करा कोशिका के अंदर जाती है तब कोशिका उर्जा में बदल देती है। रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के लिये इंसुलिन नामक हॉर्मोन बनता है। यह हार्मोन अग्नाशय(पैंक्रियाज) नामक अंग में बीटा कोशिकाओं में बनता है। यदि किसी कारण यह कोशिकाएं यह हार्मोन बनाना कम कर देती हैं तब रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है। इंसुलिन हार्मोन एक प्रकार की चाबी है जो कोशकाओं को शर्करा को अंदर लेने के लिए खोलती है। जब इंसुलिन कम होगा तो शर्करा कोशिकाओं के अंदर नही जा पाएगी जससे शर्करा ऊर्जा में भी नही बदल पाएगी और उसकी मात्रा रक्त में भी बढ़ जाएगी। अब आप सोच रहे होंगे कि अगर खून में यह शुगर बढ़ गई तो क्या समस्या है बढ़ जाने दो । किन्तु यह रक्त में बढी हुई शुगर हमारे शरीर के लिये समस्या बन जाती है। यह अगर अधिक दिनों तक बढ़ी रहे तो यह सबसे पहले गुर्दो को खराब कर देती है। आंखों में रेटिना को खराब कर देती है। यह सभी रक्त वाहिकाओं (नसों) को खराब करने लगती है जिससे हर्दय  व नसों के रोग, स्ट्रोक, पैरालिसिस आदि होने का खतरा बढ़ जाता है। अधिक शर्करा के स्तर के कारण यौन समस्याएं, पैरों में खून का दौड़ान कम हो जाना, घावों का जल्दी न भरना, रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाना जैसी समस्याऐं हो जाती हैं।
डाइबिटीज़ दो प्रकार की होती है टाइप 1 और टाइप टू। टाइप 1 अधिकतर किशोरावस्था में हो जाती है इसमें अग्नाशय कार्य करना विल्कुल ही छोड़ देता है जिससे रोगी इंसुलिन पर ही निर्भर हो जाता है। इसके होने के कारणों को पूरी तरह पता नही लगाया जा सका है। किन्तु ऑटो इम्युन बीमारी या फिर किन्ही इंफेक्शन की वजह को भी इसका कारण माना जाता है।
टाइप 2 डियाबिटीज़ हमारी खान पान व दिनचर्या की गलत आदतों के कारण होती है।
इसको नियंत्रित करने के लिए दवाइयों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण अपनी खान पान की आदतों में सुधार करना होता है। हालांकि कई प्रकार की एलोपैथी ड्रग इसके उपचार के लिए उपलब्ध हैं। सबसे अधिक मेटफॉर्मिन ग्लिमप्राइड नामक ड्रग का प्रयोग होता है। यह लिवर में ग्लूकोज का उत्पादन कम कर देती है। ग्लिमप्राइड पैंक्रियाज को स्टिम्युलेट कर इंसुलिन का उत्पादन बढ़ा देती है। किन्तु इनके अनेकों साइड इफ़ेक्ट हैं। ज्यादा दिनों तक पैंक्रियाज को स्टिमुलेट करने वाली एलोपथिक ड्रग्स खाएंगे तब एक समय ऐसा आता है की पैंक्रियाज काम करना विल्कुल छोड़ देता है। इसलिये केवल इन दवाओं पर ही निर्भरता ठीक नही है। यदि खान पान व दिनचर्या में सुधार नही किया तो कुछ समय पश्चात जब पैंक्रियाज काम करना बिल्कुल बन्द कर देता है उस समय इनका कोई उपयोग नही रह जाता है, औऱ फिर केवल इन्सुलिन के इंजेक्शन लेना ही विकल्प रह जाता है। भोजन में कार्बोहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थों का सेवन कम कर देना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट भी जटिल वाले लेना चाहिए जिनका देर से पाचन हो और वो रक्त में धीरे धीरे पहुंचे। गेंहू चावल के स्थान पर जौं, रागी, मडुआ बाजरा जैसे परंपरागत मोटे अनाजों का प्रयोग करना चाहिए। इनमें जटिल प्रकार के कार्बोहाइड्रेट होते हैं। सभी प्रकार के फल व शब्जियाँ लिये जा सकते हैं। प्रारंभ में ज्यादा मीठे फल जैसे केला आम इत्यादि न ले किन्तु मधुमेह नियंत्रित होने के पश्चात उन्हें लेना भी शुरू कर सकते हैं। ऐसे ही सब्जियों में भी आलू, घुइयां, याम आदि ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाली सब्जियों से बचना चाहिए।
मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जिन्होंने खान पान और दिनचर्या में परिवर्तन कर ब्लड सुगर को नियंत्रित कर लिया। लेकिन मेरा मानना है की प्रारम्भ में जब मधुमेह का पता चले और यह अधिक मात्रा में बढ़ी हुई हो तब एलोपथिक दवाओं का सहारा लिया जा सकता ह। फिर धीरे धीरे दिनचर्या व भोजन में परिवर्तन कर उन्हें छोड़ देना चाहिए।
करेला, जामुन, नीम, गुड़मार, मेथी जैसी अनेकों जड़ी बूटियों का उपयोग हज़ारों वर्षो से मधुमेह को नियंत्रित करने में प्रयोग किया जा रहा है। आप इनका उपयोग कर भी लाभ ले सकते हैं। न्यूट्रिवर्ल्ड आपकी सेवा में *डाइबो रस* लेकर आये हैं जो उपरोक्त जैसी अनेको जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है। जिसका अब तक हज़ारों लोग प्रयोग कर चुके हैं। सभी को इससे सकारात्मक परिणाम ही मिले हैं। *आजकल लोग अनेकों कंपनियों की आयूर्वेदिक गोलियां प्रयोग कर रहें हैं परन्तु उन गोलियों की तुलना में इसका प्रभाव अत्यधिक है क्योंकि यह कोलाइडल अवस्था में है शरीर के सम्पूर्ण द्रव कोलाइडल अवस्था में ही होते हैं अतः यह शरीर में जाकर तुरन्त ही घुल मिल जाता है। इसलिए यह ज्यादा असरकारी सिद्ध हुआ है।*
इसको 15 ml सुबह शाम लिया जा सकता है। अनेकों लोग जिनकी ब्लड सुगर एलोपैथी ड्रग लेने के बाद भी कम नही हो रही थीं। इसको लेने से सामान्य हो गई। इसको आप अपनी एलोपथिक दवा के साथ भी ले सकते हैं। जिससे उस दवा की कम मात्रा ही पर्याप्त होगी इसके प्रयोग से उसकी मात्रा नहीं बढ़ेगी। यदि साथ मेंआप उचित दिनचर्या व भोजन का भी पालन करेंगे तो एक दिन आपकी एलोपैथिक दवा भी छूट जाएगी। ऐसा अनेको लोगो के साथ हो रहा है। लोगों ने अपने अनुभवों में पाया है की न यह केवल ब्लड सुगर नियंत्रित करता है वल्कि पाचन को ठीक करता और मेटाबोलिस्म को भी सुधरता है। इसके उपयोग से सारे दिन ऊर्जा बनी रहती है।अतः न्यूट्रिवर्ल्ड का डाइबो रस लोगों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है।

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