बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन

आज हम टॉक्सिन्स जिन्हें हम जहरीले पदार्थ या फिर हमारे शरीर के लिए विजातीय पदार्थों भी कह सकते हैं इन्हीं पदार्थों पर चर्चा करेंगे।
यह दो प्रकार के होते हैं पहले हमारे शरीर के अंदर बनते हैं दूसरे वह जो हम प्रदूषित वतावरण से ग्रहण करते हैं।
हमारे शरीर के अंदर सैकड़ों प्रकार के सूक्ष्म जीव जैसे बैक्टरिया, वायरस, फंगस इत्यादि रहते हैं इनमें कुछ तरह के सूक्ष्म जीव हमारे शरीर के लिए आवश्यक होते हैं जो हमारी आंतो में रह कर पाचन में एन्ज़ाइमस व विटामिन्स का निर्माण करते हैं। लेकिन इनमें बहुत से सूक्ष्म जीव हमारे लिए हानिकारक भी होते हैं जो अनेक प्रकार के टॉक्सिन्स का निर्माण हमारे शरीर में करते हैं। शरीर में बीमारी भी पैदा करने में इस प्रकार के सूक्ष्म जीवों का बड़ा हाथ होता है। इन टॉक्सिन को बायो टॉक्सिन कहते हैं।
अब हम दूसरे प्रकार के टॉक्सिन्स पर बात करेंगे जिनको हम वातावरण से ग्रहण करते हैं। आधुनिक जीवन शैली में सुबह उठने के बाद रात को सोने तक हम सैकड़ों प्रकार के रसायनों के सम्पर्क में अनजाने में ही आ जाते हैं। इनमें से बहुत से विषाक्त हो सकते हैं। यह जहरीले रसायन सुबह के टूथपेस्ट से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों, डिब्बा बन्द आहार, कोल्ड ड्रिंक, बोतल बन्द पानी में भी विद्यमान हैं। अगर हम इन सबका प्रयोग न भी करें तब भी हम इनसे बच नही सकते हैं क्योंकि अब यह हमारे भोजन, पानी, हवा सभी में पहुँच चुके हैं। खेतों में प्रयोग होने वाले पेस्टिसाइड, हर्बीसाइड, केमिकल फर्टीलाइजर जैसे खतरनाक रसायनों ने हमारी पूरी भोजन श्रृंखला एवम जल को को दूसित कर दिया है। स्थिति यहाँ तक खतरनाक है कि यह वहाँ से होते हुए मां के दूध में भी पहुंच चुके हैं। शहरों की हवा में भी खतरनाक स्तर जहरीले रसायन घुले हुए हैं। विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित 15 शहरों में 14 शहर भारत के हैं और उनमे से भी अधिकांश शहर उत्तर भारत के हैं।
यही कारण है की आज जो बीमारियाँ हो रही हैं उनमें चिकित्सा शास्त्र की पध्दतियां उनका निदान ढूढ पाने में अक्षम साबित हो रही हैं।
इन टॉक्सिन्स को बाहर निकालने की हमारे शरीर में आंतरिक व्यवस्था है लेकिन यह व्यवस्था एक सीमा तक ही काम कर पाती है। टॉक्सिन्स हमारे शरीर में उत्सर्जी अंगों द्वारा बाहर निकाले जाते हैं। यह उत्सर्जक अंग गुर्दे, फेफड़े, आँते,मल द्वार व त्वचा होते हैं। गुर्दे(किडनी) मूत्र के माध्यम से, फेफड़े कार्बन डाइ ऑक्साइड के माध्यम से, आँते मल के माध्यम से, त्वचा पसीने के माध्यम से शरीर में जमा टॉक्सिन्स को बाहर निकालने की कोसिस करते हैं। लेकिन इस सबके बाबजूद टॉक्सिन्स हमारे शरीर के अंदर जमा रह जाते हैं। जो अनेकों स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं के कारण बन जाते हैं। यह टॉक्सिन्स जिस अंग में ज्यादा मात्रा में इक्कठे हो जाते हैं वही अंग खराब होने लगता है। आज गुर्दे  खराब होने, त्वचा में सोराईसिस होना, आंतों में सूजन आ जाना(कोलाइटिस), लिवर खराब हो जाना, डाइबिटीज़, हार्ट डिजीज जैसी बीमारियों के होने के पीछे के कारणों में टॉक्सिन्स का ही हाथ अधिक है।
यकृत(लिवर) हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है इसके 500 से भी अधिक कार्य हैं। किन्तु हम सब इसे भोजन के ठीक से पाचन के लिए आवश्यक अंग के रूप में अधिक जानते हैं। इसमें भोजन को पचाने में सहायक  एंजाइम बाईल (पित्त) इसी में पैदा होता है। जहरीले रसायनों का सबसे अधिक दुष्प्रभाव हमारे लिवर पर पड़ता है। और इसके परिणाम स्वरूप अपना कार्य करना बन्द कर देता है। अतः अगर बीमारियों से बचना है तो समय समय पर हमारे शरीर को डिटॉक्सीफाई करना अत्यंत आवश्यक है। डिटॉक्सीफिकेशन में हमारे सभी आंतरिक अंगों की सफाई हो जाती है।
शरीर को डिटॉक्सीफाई करने के लिए पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए। व्यायाम भी इस प्रकार करना चाहिए की खूब मात्रा में पसीना निकले। तथा भोजन में आर्गेनिक ताज़ी सब्ज़ियों व फलों का सेवन खूब मात्रा में करना चाहिए। इनका रस निकाल कर भी सेवन कर सकते हैं। यह सब कार्य करने शरीर के आंतरिक अंगों की सफाई हो जाती है।
न्यूट्रिवर्ल्ड का ऐलोवेरा व त्रिफ़ला एक अच्छा डिटॉक्सीफायर है। इसके साथ एंटीऑक्सीडेंट टेबलेट "माइक्रो डाइट" या सुपर एंटीऑक्सीडेंट टेबलेट "गेट द ग्लो" लेने लेने से और अच्छे परिणाम मिलते हैं। न्यूट्रिवर्ल्ड का "गेट द ग्लो " लिवर को अच्छे प्रकार से डिटॉक्सीफाई कर देता है। जिससे त्वचा में प्राकृतिक रूप से चमक आ जाती है और स्वास्थ्य अच्छा रहने लगता है।

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