बुधवार, 29 मई 2019

फंगस कैंडिडा

पूरी दुनिया में कैंडिडा और टीनिया जैसी फंगस या फफूंद का आतंक फैला हुआ है चाहे यह अमेरिका का कोई महानगर हो या फिर ग्रामीण भारत का कोई छोटा सा गांव है हर जगह फंगस का आतंक है।
इस फंगस को हिंदी में सामान्यतः दाद या खाज बोला जाता है। यह हमारे चेहरे पर जननांगों के पास बगल में या कहीं भी अपनी कॉलोनी बना लेती हैं।और उसमें खुजली होती है और बाद में पस निकलने लगते हैं। शरीर के जिन हिस्सों में नमी बनी रहती है वहां पर इनके इंफेक्शन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
मैं कई लोगों को जानता हूं जो बरसों से फंगस के संक्रमण से ग्रसित है और लाखों रुपया त्वचा रोग विशेषज्ञ को देने के बाद भी इससे मुक्त नहीं हो सके हैं। जितनी भी एंटीफंगल दवाएं हैं वे इस पर नाकामयाब हो रही हैं कुछ दिन तक के लिये फंगस दब जाती है और पुनः फिर सर उठा लेती है। तो आखिर हमें सोचना होगा की फंगस का आतंक क्यों फैला हुआ है और उससे निकलने के उपाय क्या हैं।
हमें थोड़ा पहले पीछे जाना पड़ेगा इतिहास में जिस समय दुनिया की पहली एंटीबायोटिक पेंसिलिन जिसकी खोज एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने की थी।आप सभी ने हाई स्कूल में पढ़ा होगा कि एक पेट्री डिश में एक फफूंद हो गयी थी और उसमें जो बैक्टीरिया का कल्चर था फफूंद उसको खा रही थी इसे देखकर फ्लेमिंग ने सोचा क्यों ना बैक्टरिया को मारने के लिए फफूंद में कोई तत्व होता है। तो इस तरह पेंसिलीन नामक पहली एंटीबायोटिक की खोज हुई। आज जनमानस में जैसी अवधारणा है कि जीवाणु या बैक्टीरिया हमारे सबसे बड़े दुश्मन हैं दिनभर टीवी प्रचार मैं चाहे साबुन का हो या किसी लिक्विड का हो या किसी फ्लोर क्लीनर या टॉयलेट क्लीनर का हो सब में यही बताया जाता है कि बैक्टीरिया हमारे सबसे बड़े दुश्मन हैं। बात इतनी सी है कि बैक्टीरिया में कुछ दुश्मन हो सकते हैं लेकिन सभी नहीं आज हमारी स्थिति ऐसी हो गई है की एक गांव में हमारे एक दो दुश्मन रहते हैं और उन को मारने के लिए हम पूरे गांव जिसमें अधिकांश लोग हमारे मित्र हैं उन सबको बम गिरा कर मार रहे हैं। यही दृष्टि आज जीवाणुओं को लेकर हमने अपना रखी हैं। मैं मानता हूं कि जीवाणुओं की वजह से हैजा चेचक जैसी बीमारियां पहले फैलती थी और हमने एंटीबायोटिक की मदद से ही उनसे मुक्ति पाई है। लेकिन हमें सोचना होगा कि हमारे सारे जीवाणु शत्रु नहीं है बल्कि मित्र ज्यादा हैं हमारी त्वचा पर लाखों प्रकार के जीवाणुओं के पूरे देश बसे हुए हैं हमारी आंतों में भी जीवाणुओं की पूरी कॉलोनी बसी हुई है जो हमारी पाचन तंत्र को बेहतर बनाते हैं अगर आंतों में यह जीवाणु ना हो तो बहुत सारे विटामिंस जिनका यह संश्लेषण करते हैं हमें नहीं मिल सकेंगे। हमारी आँतों में अगर इन जीवाणुओं का जरा सा भी संतुलन बिगड़ जाए तो हमें अल्सरेटिव कोलाइटिस, दस्त, आई बी एस जैसी पेट की कई गंभीर समस्याएं हो जाती हैं। जो आधुनिक चिकित्सा पद्धति मे लाइलाज है।
आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं विषय से भटक गया बात फंगस की हो रही थी और आपने अपने पोस्ट को जीवाणुओं पर ला पटका दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं प्रकृति में हर चीज एक दूसरों को बैलेंस करती है मांसाहारी जानवर शाकाहारी जानवरों की ज्यादा संख्या को संतुलित करते हैं ऐसे ही फफूंद और जीवाणु यानी बैक्टरिया और फंगस के साथ है यह एक दूसरे के लिए दुश्मन तू मेरा मैं तेरी दुश्मन जैसी स्थिति में हैं। फफूंद जीवाणुओं को खत्म करती हैं और जीवाणु जहां भारी पड़ते हैं वहां फफूंद को खा जाते हैं आज हमने एंटीबायोटिक का नासमझी से उपयोग करके और जरूरत से ज्यादा उपयोग करके शरीर के लिए लाभदायक सभी बैक्टीरिया को खत्म कर दिया है जो यह बैक्टीरिया हमारी त्वचा पर रहकर हानिकारक फफूंद को मार भागते थे। आज एंटीबायोटिक का उपयोग मांस पैदा करने से लेकर फसलों में तक बहुतायत से हो रहा है।
आप इसको ऐसे समझ सकते हैं जब आपके बालों में डैंड्रफ हो जाती है तो आपने अपनी मां को बालों में दही मट्ठे से सर धोते हुए देखा होगा। गांव में कुछ लोग इसके लिए सिरके का भी प्रयोग करते हैं तो मैं आपको बता दूं कि दही में लैक्टो एसिड बेसिलस नामक जीवाणु बहुतायत में पाए जाते हैं।तथा सिरके में भी जीवाणु बहुतायत में होते हैं यह जीवाणु जब हमारे सिर के संपर्क में आते हैं तो वहाँ उपस्थित डैंड्रफ या रूसी को खत्म कर देते हैं ऐसे ही शरीर में अन्य फंगस के ख़ात्मे के लिए भी जीवाणु जरूरी हैं। हमारे द्वारा प्रयोग किये जाने वाले उत्पादों में जीवाणुओं को खत्म करने वाले रसायन भी मिले होते हैं, जैसे डियो, विभिन्न प्रकार के साबुन, क्रीम, इत्यादि। इसका परिणाम यह होता है की त्वचा पर स्वाभविक रूप से रहने वाले जीवाणुओं का सन्तुलन बिगड़ जाता है। जिससे हानिकारक फंगस पनप जाती है अब वहाँ फंगस को खत्म करने वाले जीवाणु नही होते हैं।
उदाहरण के लिए मैं यहां पर एक जीवाणुओं का जिक्र करूंगा यह जीवाणु है लैक्टो एसिड बेसिलस जिस से दही जमता है यह जीवाणु स्वाभाविक रूप से हमारी आंतो में हमारे जननांगों के आसपास बहुतायत में पाया जाता है यह हमारे शरीर में बहुत से एंजाइम बनाता है तथा हानिकारक जीवाणुओं व फंगस से मुक्ति भी दिलाता है। यह जीवाणु विशेषकर स्त्रियों के जननांगों में काफी मात्रा में होता है, जिससे योनि फंगस संक्रमण से बची रहती हैं किंतु आज फंगस का संक्रमण स्त्रियों में बढ़ता जा रहा है। उसका कारण अत्यधिक साबुन व अन्य रसायनों इत्यादि के प्रयोग ने इस जीवाणुओं को वहां से नष्ट कर दिया है। आज स्त्रियों में लिकोरिया के बढ़ते हुए कारणों में यह फंगस भी जिम्मदार है।
हमारे गांव के आसपास एक धार्मिक स्थान पर एक तालाब है इसमें त्वचा के संक्रमण से ग्रसित लोग स्नान करने जाते हैं वहां स्नान करने से ही उनका त्वचा का फंगस संक्रमण समाप्त हो जाता है। तालाब में आप जाएंगे तो गंदगी व कीचड़ के सिवा कुछ नहीं दिखेगा। मुझे लगता है इसका कारण उस मिट्टी में पाए जाने वाले जीवाणु हैं जो त्वचा पर फंगस के संक्रमण को समाप्त कर देते हैं।
यदि आपको फंगस से बचना है तो जीवाणुओं का उपयोग करना होगा सामान्य साबुन का उपयोग बंद कर दें ग्लिसरीन सोप लगा सकते हैं। त्वचा पर जहां फंगल संक्रमण है वहां पर दही लगाएं सिरका लगाएं इससे काफी आराम मिलेगा। थूक या लार भी लगा सकते हैं  इसमें भी काफी जीवाणु होते हैं जो फंगस को नष्ट कर सकते हैं। शुद्ध शहद व ऐलोवेरा भी फंगस को नष्ट करता है।
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