गुरुवार, 26 मई 2022

उपवास का विज्ञान

इसबार एक सैंयोग हुआ है नवरात्रि और रमजान के उपवास एक साथ शुरू हुए हैं।
यूं तो सभी धर्मों में उपवास किसी न किसी रूप में होते हैं लेकिन जो धर्म भारत की धरती पर पैदा हुए हैं या कहें जिनका मूल सनातन धर्म है उसमें व्रत उपवास का कुछ ज्यादा ही महत्व है। अपने यहां अगर कोई सारे व्रत उपवास रखे तो साल के आधे दिन तो व्रत उपवास में ही निकल जाएंगे। कभी कोई एकादशी कभी अमावस्या तो कभी कोई चतुर्थी पता नहीं कितनें बहाने हैं हमारी संस्कृत में उपवास रखने के, और सनातन संस्कृति से जुड़े हुए धर्मों में सबसे ज्यादा व्रत रखते हैं जैनी लोग।
व्रत उपवास का जो भी धार्मिक महत्व होगा उसके बारे में तो मुझे ज्यादा नहीं पता भी नही है और इस पोस्ट यह उद्देश्य भी नही है, लेकिन व्रत उपवास किस तरह हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं इनका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है इसके बारे में मैं जरूर यहां चर्चा करूंगा।
पहले तो मैं यह बताऊंगा कि आखिर भारत की धरती पर ही इतने व्रत उपवास क्यों हैं इसका कारण मुझे जान पड़ता है कि हम प्राचीन समय से ही भरी पूरी खाई अघाइ सभ्यता रहे हैं।
इसका कारण भौगोलिक है अपने देश में हर तरह की जलवायु है। नदियों की उपजाऊ मिट्टी से बने मैंदान है। जिसमें हर तरह के अनाज, फल, सब्जियां आसानी से उग जाते हैं। प्राचीन समय में आबादी बहुत कम थी तो इतनी खाद्यान्न की समस्या ना थी। हमारी धरती यहां के लोग प्राचीन लोगों की भोजन की जरूरतों पूरा करने में सक्षम थी कोई भुखमरी नहीं थी। हमारी संस्कृति में उपवास इसलिए नहीं आया है कि कोई खाने पीने की कमी थी यहां उपवास भरे हुए पेट से पैदा हुए हैं। अपने यहां जैन लोग सबसे ज्यादा उपवास करते हैं तो इसका कारण यही है कि जैनी प्राचीन समय से ही समृद्ध रहे हैं क्योंकि उनके धार्मिक विस्वासों ने उन्हें खेती करने से रोक दिया तो वह सब व्यवसाय में आ गए और व्यवसायी आदमी हमेशा संपन्न होता ही है इसलिए जैनियों ने सबसे ज्यादा व्रत उपवास के बहाने ढूंढे हैं।
व्रत उपवास के फायदे आज पश्चिम का विज्ञान भी बता रहा है। वहां बाकायदा इस पर बड़ी-बड़ी किताबें लिखी जा रही हैं कि किस तरह व्रत उपवास किये जायें। वहां तरह-तरह की फास्टिंग की पद्धतियां बताई जा रही हैं। कई तरह की फास्टिंग चल रही है।
मजेदार बात यह है कि जितने भी तरीके वह बता रहे हैं वह सब हमारे यहां पहले से ही प्रचिलित हैं।
अपने यहां एक कहावत है कि तीन बार खाये रोगी, दो बार भोगी और एक बार खाए योगी।
आज अमेरिकन किताब लिख रहे हैं "हाउ टू ईट बंस ए डे" आज वह भी कह रहे हैं कि दिन में एक बार खाना ही ठीक है। पहले वह लोग कहते थे कि दिन भर थोड़ा-थोड़ा खाते रहना चाहिए लेकिन आज वह कह रहे हैं कि नहीं जितना खाना है एक बार में खा लो ज्यादा से ज्यादा दो बार में खा लो बाकी समय खाली रखो पेट को और बाकायदा इसके पीछे उनकी रिसर्च है विज्ञान है।
आज विज्ञान कह रहा है कि हम लोग जितनी ज्यादा मात्रा में भोजन खा रहे हैं हम इतना खाने के लिए डिजाइन ही नहीं हुए हैं। हमारे पूर्वज जो जंगलों में रहते थे उनके लिए इतना भोजन हर समय उपलब्ध नहीं था इसलिए कई कई दिन उन्हें भूखा रहना पड़ता था। उसी हिसाब से हमारा शरीर डिजाइन है। लेकिन आज हर समय भोजन उपलब्ध है आज ज्यादा खाना ही हमारी स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का कारण है आज डायबिटीज ब्लड प्रेशर, ह्रदय के रोग, पेट की समस्याएं इसके पीछे हमारा ज्यादा भोजन करना ही है।
इसलिए आप स्वस्थ रहना चाहते हो तो अपने पूर्वजों की तरह बीच में एक-एक दिन भूखा रहना शुरू करो।
हम सब जानते हैं हमारे शरीर को ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट से मिलती हैं और जब यह ऊर्जा शरीर में ज्यादा हो जाती है तो ग्लाइकोजन के रूप में लिवर में इकठ्ठा हो जाती है। अगर इसके  उपयोग की नौबत नही आती तो शरीर इसको बसा के रूप में इकट्ठा कर लेता है। यह ऐसा ही है जब हमारे घर में ज्यादा भोजन आ जाता है तो हम उस भोजन को उठाकर अपने फ्रिज में रख देते हैं। लेकिन यदि हमारे घर में लगातार इतना ज्यादा भोजन आता रहे औऱ हमारे फ्रिज भी भर जाए, तो हम उसका प्रसंकरण कर घर मे इक्कट्ठा करेंगे। लेकिन हमारे परिवार को इस अतिरिक्त संरक्षित किये गए भोजन की जरूरत ही ना पड़े। तो क्या होगा यह भोजन खराब होने लगेगा। हमारे घर मे भी दुर्गन्ध फैलने लगेगी। यही हमारे शरीर में हो रहा है। हमारे लिवर में जमा ग्लाइकोजन और शरीर में जमा वसा उन दिनों के लिए होती हैं जब हमें कोई भोजन नहीं मिलता तो हमारा शरीर उससे ही काम चलाता है. 
जब हमें कमसे कम 12 घंटे से अधिक कोई भोजन नहीं मिलता है तब शरीर इस जमा स्टॉक में से ऊर्जा लेने लगता है, यानी कि वसा टूटनी शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया को कीटॉसिस बोलते हैं इसलिए 24 घंटे का उपवास रखने को कहा जाता है। आजकल एक पद्धति और भी लोकप्रिय हो रही है कि अगर हम रोज अपने पेट को 16 घंटे खाली रखें तब भी हम उपवास का फायदा ले सकते हैं। इसको इंटरमिटेंट फास्टिंग कहा गया है, यानी कि एक बार में लंबा उपवास ना करके बीच-बीच में छोटे छोटे उपवास करना। 
रमजान भी एक तरह की इंटरमिटेंट फास्टिंग है, शायद अभी यह 12 घण्टे की फास्टिंग है लेकिन यदि इसको 16 घंटे खींचा जा सकता तो यह स्वास्थ्य के लिहाज से ज्यादा कारगर हो जाएगी। क्योंकि 12 घण्टे में कीटोसिस सिर्फ स्टार्ट ही होती है, 4 अतिरिक्त घण्टे मिलने से कीटोसिस और फ़ास्ट हो जाएगी।
 धर्मों को इस प्रक्रिया की जानकारी थी इसलिए धर्मों ने व्रत और उपवास बनाए मैं यह नहीं कहता।
 मेरे लिए यह किसी संगठित धर्म से जुड़ी हुई बात भी नहीं है मेरे लिए उपवास की समझ आदिम मनुष्य का प्रकृति से तालमेल से विकसित हुई है। समय के साथ साथ उनको धार्मिक कर्मकांडों से जोड़ दिया गया ताकि लोग उसका नियम से पालन करते रहें. मैंने कहीं पढ़ा है कि अरब में रमजान इस्लाम के आने से पूर्व से ही चलता रहा है। यह वहां की आदिम संस्कृति का हिस्सा है ना कि सिर्फ इस्लामिक संस्कृति का रमजान अरब की जलवायु के हिसाब से ज्यादा डिज़ाइन है क्योंकि अरब में दिन अत्यधिक गर्म होते हैं और रातें आरामदायक और ठंडी ऐसे में दिन में उपवास करना और आराम करना ज्यादा सुविधाजनक है।
 भारत में मौसम तेजी से बदलते हैं नवरात्रि वर्ष में दो बार आते हैं एक बार जब सर्दियां खत्म हो चुकी होती हैं जब हम गर्मी का स्वागत कर रहे होते हैं और दूसरी बार जब बरसात खत्म हो चुकी होती है हम सर्दियों के आगमन का स्वागत कर रहे होते हैं दोनों ही समय दो ऋतुओं का संधिकाल हैं। मौसम बदलने से शरीर में भी तेजी से परिवर्तन होते हैं। आप सब जानते हैं जब मौसम बदलता है तो हम सभी को समस्याएं होने लगती हैं तो ऐसे समय में ही नवरात्रि आती है ताकि हम अपने शरीर की शुद्धि कर सकें उसको आने वाली ऋतु के लिए तैयार कर सकें। 
 मनुष्य तो मनुष्य मैंने पशुओं को भी उपवास करते हुए देखा है घर के कुत्ते भी बीच-बीच में एक आद दिन खाना नहीं खाते हैं। कोई भी पशु बीमार होने पर सबसे पहले भोजन छोड़ता है ताकि उसकी अंदर की उर्जा उसके शरीर को सही करने में प्रयोग आये।
हम लोग अभी तक यह सुनते हैं कि पानी पीना शरीर के लिए अच्छा होता है जितना ज्यादा पानी पिएंगे उतना ही शरीर स्वस्थ रहेगा लेकिन नई रिसर्च यह बता रही है कि जिन चूहों को कम पानी दिया गया उनकी उम्र उन तो चूहों की तुलना में ज्यादा हुई  जिन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी दिया गया था।वैज्ञानिक आज कह रहे हैं कि हमें कुछ दिन बिना पानी के भी रहना चाहिए इसलिए ही हमारी संस्कृति में बहुत से उपवास निर्जला है।
आज की जीवनशैली में शायद ही ऐसा कोई दिन होता है जिस दिन हमें भोजन ना मिलता हो।
तो ऐसे में यह तीज त्यौहार  व्रत या रोजा रखने के अच्छे बहाने हैं धार्मिक कारणों से ना सही स्वास्थ्य कारणों से ही आप यह उपवास या रोजा रखिए। लेकिन उपवास को उपवास की तरह रखिए ना कि उपवास के नाम पर दिनभर तरह-तरह की चीजें खाते रहे।

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