गुरुवार, 26 मई 2022

फेकल यानी कि मानव मल का ट्रांसप्लांटेशन


फेकल यानी कि मानव मल का ट्रांसप्लांटेशन
😊😊वैधानिक चेतावनी यह पोस्ट भोजन करते समय न पढ़े☺️☺️
हमारा खून एक दूसरे के काम में आ जाता है हमारा लीवर, हमारी किडनी तो खूब ही एक मनुष्य की दूसरे मनुष्य के लगाई जा रही हैं। यहां तक की अब तो हृदय तक का भी ट्रांसप्लांटेशन हो जाता है।
लेकिन आपने यह नहीं सुना होगा कि एक मनुष्य का मल दूसरे मनुष्य के काम आ रहा है या दूसरे मनुष्य के शरीर में चढ़ाया जा रहा है। जी हां वही मल जिसे हम पोट्टी बोलते हैं सुबह-सुबह जाकर टॉयलेट में निकाल कर आते हैं।
पिछली दो पोस्टों से इतना तो जान ही गए होंगे कि हमारी आँतों में बहुत सारे सूक्ष्म जीव रहते हैं जो हमारे शरीर के लिए जरूरी होते हैं। अगर हम का संतुलन बिगड़ जाए उनमें से कुछ खत्म हो जाए तो हमारा शरीर विभिन्न में बीमारियों से ग्रसित हो जाता है. ऐसी ही पेट दो बीमारियां हैं आईबीएस और अल्सरेटिव कोलाइटिस, आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में इन दोनों को लाइलाज माना जाता है।
जब अमेरिका में रिसर्च की गई तो इन बीमारियों का संबंध भी गट माइक्रोबायोम अर्थात पेट में आश्रय पाने वाले सूक्ष्म जीवों से निकला।
हम जो मल त्यागते हैं उस मल में भी वही सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो हमारी आँतों में पाए जाते हैं।
वैज्ञानिकों ने विचार किया क्यों ना किसी स्वस्थ व्यक्ति का मल बीमार व्यक्ति की आंतों में पहुंचा दिया जाए जिससे स्वस्थ करने वाले सूक्ष्म जीव वहां पनप जाएंगे और व्यक्ति स्वस्थ हो जाएगा। जब यह प्रयोग किया गया तब यह सफल पाया गया। बाद में अमेरिकी सरकार की नियामक एजेंसी ने भी इस इलाज को मान्यता दे दी। इस प्रक्रिया को करने के लिये ऐसा फेकल डोनर ढूंढा जाता है जिसने अपने जीवन में कभी भी एंटीबायोटिक्स का प्रयोग ना किया हो। एंटीबायोटिक्स हमारे लिए जीवन रक्षक तो हैं लेकिन इनका बिना सोचे समझे अंधाधुंध प्रयोग हमारी कई समस्याओं का कारण भी है। हालांकि आज की पोस्ट इस विषय पर नहीं है इस पर फिर कभी बात होगी।
ऐसा नहीं है कि मानव मल का इलाज में प्रयोग अमेरिका में पहली बार किया गया है। इससे पहले चीन की चिकित्सा पद्धति में भी इसका प्रयोग देखने को मिलता है वहां यदि किसी व्यक्ति का दस्त ठीक नहीं हो रहे होते तो अंत में उसे मानव मल घोलकर पिलाया जाता था और इससे परिणाम मिल जाते थे। यह वहाँ के चिकित्सा शास्त्र की बाहरवीं शताब्दी में लिखी पुस्तकों में इसका जिक्र है। पिछली शताब्दी तक वहाँ के पारंपरिक चिकित्सक इसका प्रयोग करते रहे हैं। प्रकृति में यह दस्त ठीक करने का तरीका चिम्पैंजियों में भी देखा गया है। दस्त लगने पर वे अपने स्वस्थ साथी का मल खाकर ठीक होते हैं। लेकिन वे इसका प्रयोग दस्त लगने पर ही करते हैं सामान्य अवस्था मे नहीं।
इस पोस्ट को पढ़कर जो भी सवाल मन मे आ रहे हो जरूर रखें।



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