गुरुवार, 26 मई 2022

जब ऊंट का गोबर खा कर जर्मन सेना की बची जान औऱ गोबर का विज्ञान


जब ऊंट का गोबर खा कर जर्मन सेना की बची जान औऱ गोबर का विज्ञान
गाय के गोबर से जुड़ी बहस तो आप अक्सर सोशल मीडिया पर देखते ही रहते हैं लेकिन मैं एक आपको ऐसा किस्सा बताने जा रहा हूं जिसमें जर्मन सेना को अपनी जान बचाने के लिए ऊंट का मल खाना पड़ गया था।
बात द्वितीय विश्व युद्ध की है, यानी कि 1945 के आस पास की अफ्रीका के फ्रंट पर जर्मन सेना थी और जर्मन सेना को लग गए थे दस्त। आजकल भी हम लोगों का अगर पेट खराब होता है तो उस दिन घर से बाहर निकलना उचित नहीं समझते हैं और अंदाजा लगाइए जब पूरी सेना को दस्त लग गए हो तो वह क्या करेगी क्या खाक युद्ध लड़ेगी। आप लोग सोच रहे होंगे कि दस्त लग गए तो कौन सी बड़ी बात एक एक गोली मेट्रोजिल लोमाप्राइड की या नारफ्लाक्सासिन, टिनडिनडाज़ोल की खा लेते हैं तो सही हो जाते हैं, एक ही खुराख में सब ठीक।
लेकिन उस समय इतना आसान नहीं था।
उस समय तक पहली एंटीबायोटिक पेन्सिलिन की खोज तो हो चुकी थी लेकिन उसका औद्योगिक निर्माण शुरू नहीं हो पाया था। जर्मन सैनिक जितने तरीके दस्त बंद करने के जानते थे वह सब अजमा लिए लेकिन दस्त बंद होने का नाम ही ना लें तो उस समय वहां के लोकल लोगों मूल निवासियों को बुलाया गया और पूछा गया जब आपको दस्त लगते हैं तब आप क्या करते हो तो उन्होंने कहा हम लोग ऊंट का गोबर खा लेते हैं। लेकिन शर्त यह है कि गोबर ताजा होना चाहिए। जर्मन सेना को अपने दस्त बंद करने थे तो उनके पास कोई चारा ना था सेना को ऊंट का गोबर खाना बना गोबर खाने से उनके दस्त बंद हो गए।
इसके पीछे क्या विज्ञान था उस समय न तो वे अफ्रीकी लोग जानते थे और ना ही जर्मन सेना। पर जान बचती है तो गोबर में ही क्या बुराई है।
आज विज्ञान ने जो खोज की वो मैं आपको बताता हूँ। विज्ञान यह नहीं मानता कि हमें किसी ईश्वर ने बनाया है विज्ञान कहता है कि हमारा विकास हुआ है एक कोशिकीय जीव से मानवता तक। हमारे शरीर में पूर्व के सभी जीवनों के अंश मौजूद हैं और सबसे अधिक मात्रा में तो एक कोशिकीय सूक्ष्म जीव।
हम सब जानते ही हैं दस्त लगने के अधिकांश मामलों में कारण कोई बाहरी इंफेक्शन होता है किसी ऐसे सूक्ष्मजीव का इन्फेक्शन जो आँतों में जाकर वहाँ रहने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है या फिर उनका बैलेंस बिगाड़ देता है शरीर उस नुकसानदेह सूक्ष्म जीव से पीछा छुड़ाना जात चाहता है इसलिए वह बार-बार लूज मोशन करके बाहर निकालता है। घर पर होते हैं तो हम दही या छाछ पी लेते हैं और इससे हमें फायदा भी मिल जाता है। इस फायदे का  कारण भी सूक्ष्म जीव है। जो जीवाणु दही में होते हैं वही हमारी आँतों में भी होते हैं। दही के जीवाणु जाकर आंतों के खतरनाक जीवाणुओं को खत्म कर देते है।
इंसानों का विकास हरबी बोरस यानी घास फूस खाने वाले जंतुओं से हुआ है। तो जो बैक्टीरिया घास चरने वाले पशुओं की आंतों में होते हैं वही जीवाणु हमारी आँतों में भी होते हैं।
 दूध निकालना दही बनाना आदमी ने बहुत बाद में सीखा होगा आप सोचिए जब आदिमानव जंगलों में रहता होगा उसको दस्त लगते होंगे तो वह क्या करता होगा। उसे यह प्रकृति ने ज्ञान दिया था कि यह जो जानवरों का गोबर है तुम खाओगे तो तुम्हारे दस्त ठीक हो जाएंगे आपने कुत्तों को भी कभी कभार गाय भैंस का गोबर या घोड़े की लीद खाते हुए देखा होगा यह भी उसी प्रक्रिया का अंग है।
आज प्रोबियोटिक फूड, सप्लीमेंट्स जाने क्या-क्या बाजार में आ गया है पर दुनिया का सबसे पुराना प्रोबायोटिक अगर कुछ है तो है इन जानवरों का ताजा गोबर। आज भी कुछ इंसान गाय के गोबर के प्रेमी हैं तो उसका कारण ऊपर से भले ही देखने मे धार्मिक लगे किंतु यह हमारी वही बेसिक इंस्टिंक्ट है जो प्रकृति ने हमें हमारे सर्वाइवल के लिए दी है। 
भारत के लोगों को गाय के गोबर को खाने की इंस्टिंक्ट दी है क्योंकि यहाँ गाय होती है और अरब और अफ्रीका वालों को ऊँट का गोबर क्योंकि वहाँ ऊँट होता है।
तो आप समझ ही गए होंगे कि ऊंट के गोबर ने जर्मन सेना के लिए क्या काम किया था। एक तरह से यह प्रोबायोटिक फूड था उसके गुड बैक्टीरिया ने जर्मन सैनिकों की आँतों में जाकर दस्त लगने वाले खराब बैक्टीरिया को बाहर कर दिया था। और वे दस्तों से मुक्त हो गए थे।

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