गुरुवार, 26 मई 2022

क्या कॉर्पोरेट या पूंजीवादी व्यवस्था हमें गरीब बनाए रखना चाहती है?

क्या कॉर्पोरेट या पूंजीवादी व्यवस्था हमें गरीब बनाए रखना चाहती है?
बहुत से लोगों का अभी भी मानना है कि पूंजीवाद हमारा शोषण करता है. अभी किसान आंदोलन में यह बात निकलकर और सामने आई अधिकतर किसान यह तर्क दे रहे थे कि हम पूंजीपतियों के हाथ में गिरवी रख दिए जाएंगे और वह हमारा शोषण कर लेंगे. जब यूरोप में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी नई नई फैक्टरीयां लगी थी उन दिनों यह माना जा सकता है कि मजदूरों का शोषण होता था। उनके काम के घंटे निश्चित नहीं थे, छुट्टियां नहीं थी, मजदूरी बहुत कम मिलती थी, स्वास्थ्य सुविधाओं का ख्याल नहीं था। उसी दौर में कार्ल मार्क्स आए और उन्होंने दुनिया की समस्याओं की जड़ को पूंजीवाद का दुष्परिणाम बताया एक पुस्तक लिखी दास कैपिटल और यह नारा दिया कि दुनिया के सारे मजदूर एक हो जाओ। उनका यह मानना था कि पूंजीवाद मज़दूरों के शोषण पर टिका हुआ है.
पूंजीवाद तो वहां से बहुत आगे निकल चुका है और अब वह उदारवाद बन चुका है। आज आप किसी भी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करके देखिए जीवन की सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध हैं। आपका नियोक्ता आपका हर तरह से ख्याल रखता है. लेकिन मार्क्स के अनुयाई वही हटके रह गए। वह आज भी सारी समस्याओं की जड़ कॉरपोरेट को ही मानते हैं। जब मार्क्स ने दास कैपिटल लिखी हो सकता है उन दिनों के परिपेक्ष में उनकी बातों में कुछ तथ्य हो सकता हो। उनके बाद पूरी दुनिया में मार्क्सवाद पर भी आधारित व्यवस्थाएं बनाई गई और पूंजीवाद पर भी लेकिन मार्क्सवादी व्यवस्था विफल हो गई क्योंकि वह मनुष्य के स्वाभाविक मनोविज्ञान के अनुकूल नहीं थी। आज पूंजीवादी व्यवस्था उदारवाद बनकर खूब फल फूल रही है।
अब उस प्रश्न का उत्तर की क्या पूंजीवाद हमें एक गरीब बनाए रखना चाहता है ?
 पूंजीवाद की बुनियाद उपभोक्तावाद पर टिकी है,  सफल उपभोक्ता वही है जिसके पास क्रय शक्ति है। जब भी आम आदमी के पास पैसा कम होता है तो सबसे ज्यादा चिंता उद्योग पतियों को ही होती है उनके कारखाने आम लोगों के उवभोग करने से ही चलते हैं जब लोगों के पास पैसा ही नहीं होगा तो वह समान क्या खरीदेंगे।
गरीबों के कल्याण की जितनी भी योजनाएं आती हैं उनके पीछे पूंजीवाद ही होता है आप सोचते हैं कि मनरेगा चलाकर सरकार मजदूरों के बारे में सोच रही हैं या उज्जवला में गैस देकर गरीबों की ही फिक्र की जा रही है। यह मुफ्त राशन बांट कर लोगों का सिर्फ लोगों का ही पेट भरा जा रहा है। इन सब कल्याणकारी योजनाओं के पीछे पूंजीपतियों जिन्हें हम आधुनिक भाषा में कॉर्पोरेट कहते हैं उनको पोषित करने वाली संस्थाओं का दबाव होता है। 
कि पैसा पीरामिड के वाटम पर जाना चाहिए तभी वहां से मांग पैदा होनी चाहिए, तभी आगे की व्यवस्था चलेगी। 
गांव कस्बे के किसी भी दुकानदार से पूछ लीजिए जिस साल उस क्षेत्र में बाढ़ सूखा या कोई ऐसी आपदा आती है जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता है तो उन किसानों के साथ-साथ उन दुकानदारों की भी चिंता बढ़ जाती है क्योंकि उनकी आमदनी उन्हीं किसानों पर टिकी हुई है। इसलिए कोई भी पूंजीपति, उद्योगपति किसानों को गरीब रखना नहीं चाहता है क्योंकि उसकी सारी व्यवस्था उनकी क्रय शक्ति पर ही टिकी हुई है।
किसान कानून की वापसी पर मैं फिर कहूंगा और राजनीति जीत गई देश हार गया।

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